मोदी जी के साथ योग : उष्ट्रासन
उष्ट्रासन की अंतिम अवस्था में पहुंचने के बाद हमारे शरीर की आकृति कुछ-कुछ ऊंट के समान प्रतीत होती है, इसी कारण इसे उष्ट्रासन कहते हैं। यह आसन वज्रासन में बैठकर किया जाता है। उष्ट्रासन शरीर के अलगे भाग को लचीला और मजबूत बनाता है। इस आसन से छाती फैलती है और फेफड़ों की कार्यक्षमता में बढ़ोतरी होती है। मेरुदंड एवं पीठ को मजबूत और सुदृड़ बनाने के लिए भी इस आसन का अभ्यास किया जाता है। गले संबंधी रोग में भी यह आसन लाभदायक है। उदर संबंधी रोग, जैसे कांस्टीपेशन, इनडाइजेशन, एसिडिटी रोग निवारण में इस आसन से सहायता मिलती है। गले संबंधी रोगों में भी यह आसन लाभदायक है।